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कविता

मैं हूँ कुर्सी का बंदा

अमरसिंह रमण


मैं हूँ कुर्सी का बंदा
मेरा नाम चतुरी आनंदा
मानो सबके गले का फंदा
पर यही है मेरा जीवन-धंधा
एक ही कुर्सी का मैं नेता
कोई कहता है नाक का नेटा
कोई कहता है भईया, बेटा
पोलिटिकल भाषण मैं करता
अगड़म-बगड़म खूब लपेटा
कोई कहे अच्‍छा या गंदा... पर यही है...

झूठ बोलना मेरा काम
इसमें होता बड़का नाम
चाहे बिता हूँ कौड़ी के दाम
लड़कन बच्‍चन करें आराम
मुझे तो चाहिए केवल चंदा... पर यही है

आने दो, फिर आम चुनाव
घूमूँगा मैं गाँव-गाँव
भाषण दूँगा बता के भाव
जनता होगी लहा लाव
फिर मारूँगा पोलिटिकल डंडा... पर यही है...

 


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